थैंक्यू इंस्टाग्राम !
इनके डेवलपर्ज़ की वजह से एक ही जन्म में खुद को इतने इफेक्ट्स रोगन में देख लेने का सुख इसी सदी के आदमी/औरत को मिला।
हर कोई प्रोडक्ट मॉडल हो गया, कुकरी से लेकर ट्रेवल फोटोग्राफी का एक्सपर्ट हो गया। स्टूडियो वाले को केवल प्रिन्ट निकालने भर का पैसा देना है।
जिसके भी हाथ मे स्मार्टफोन है वो फेयर एंड लवली से लैक्मे के प्रचार के लिए लायक हैं “भारतीय मानसिकता के मुताबिक।”
रोटी की जुगत काँख में दबा के भी मोमेंट्स कैप्चर करने की बेजोड़ कोशिश हमारे यहाँ अब हर तबके में होती है, भले ही पैर फिसल के हम चल बसें लेकिन ज़िंदादिली के लिए जान देना बनता है, किसी के लिए देना बने न बने।
इतना सब सुंदर है, क्या सिर्फ तस्वीरों में? या क्या सिर्फ इसलिए कि हम उकड़ू न रहें इस रिवाज में फिट होते रहें।
फ़ेसबुक को एक दिन न याद किया जाए तो फ़ेसबुक भी आपको याद नहीं रखता है। तो ये तस्वीर किसके लिए?
हम शायद उनके लिए ही लेते हैं तस्वीरें जो हमें सोशल मीडिया के बाहर अपनी नज़रों में क़ैद रखना पसंद करते हों दिन रात और उनकी नज़र ही है जिससे देखने वाला तस्वीर को अच्छा कह बैठता है ।