आदरणीय अनिल* जी,

महाराष्ट्र से आकर एक दिन बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में समय व्यतीत करना बहुत सुखद अनुभव रहा।

इस समारोह के लिए पढ़ते और तैयारी करते हुए मुझे भारत सरकार राजभाषा विभाग से जारी “राजभाषा भारती” पत्रिका के बारे में पता लगा। मैंने भारतीय संविधान में राजभाषा के अनुच्छेदों 343 -351 के बारे में थोड़ी और पढ़ाई की , मित्रों से बात करते हुए इस बारे में और जानकारी मिली की राजभाषा के बारे में और क्या-क्या पढ़ सकते हैं।

#सीडैक द्वारा बनाया गया #लीला मोबाइल #ऐप देखा जिसमें #प्रबोध #प्रवीण #प्राज्ञ स्तर पर भारत की चौदह विभिन्न भाषाओं के माध्यम से हिंदी सीखी जा सकती है। यह मोबाइल एप एंड्रॉइड तथा आईओएस दोनों प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है यह जान कर मैंने भी तुरत प्रयोग कर देखा।

मैंने समझा की किस तरह #यूनीकोड क्रांति ने हिंदी की देवनागरी लिपि में लिखने को सहज बना दिया है और तकनीकी तौर पर हिंदी को अनुवाद की भाषा से बाहर निकाल कर हमारे हाथ में डिजिटल अभिव्यक्ति की भाषा भी बना दिया। हिंदी वस्तुतः बरगद का पेड़ है जिसकी शाखाएं सदियों तक जड़ें बनती रहेंगी । हम बनेंगे बीज यथावत जहाँ हैं वहाँ रहते हुए और खूब तरक्की करेगी हिंदी हमारी कोंपलों को हृष्ट पुष्ट करती हुई।

प्रणाम
प्रज्ञा मिश्र

*आदरणीय अनिल सुलभ जी बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष हैं।

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